भारत के ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर कोविड – 19 का प्रभाव

भारत के ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर कोविड – 19 का प्रभाव

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का भारतीय जीडीपी पर हमेशा से ही महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। भारत की आजादी के पहले से ही ग्रामीण क्षेत्र का राष्ट्रीय आय मे प्रमुख योगदान रहा है। आज भी भारत की राष्ट्रीय आय मे ग्रामीण अर्थव्यवस्था का योगदान 46% है। भारत की 68.8% (2011 के जनगणना के आधार पर) आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों मे निवास करते है। यही कारण है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा है कि भारत कि आत्मा गाँवों मे बसती है ।

 

 

ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सामान्य अर्थ

ग्रामीण क्षेत्रों मे हो रही विभिन्न प्रकार के कार्यो जिसे हम ग्रामीण अर्थव्यवस्था मे समाहित कर सकते है, उनमे कृषि, भूमि सुधार एवं भूमि विकास कार्यकरम, पशुपालन, ग्रामीण लघु एवं कुटीर उद्योग इत्यादि प्रमुख है। भारत सरकार समय समय पर इसमे विभिन्न आर्थिक कार्यकलापों को समाहित करते रहते है।

 

 

कोविड – 19 एक परिचय

यह एक बीमारी है जो कोरोना नामक विषाणु से होता है। इसकी शुरूआत चीन के हुवाई प्रांत के वुहान शहर से हुई है। ऐसा माना जाता है कि यह विषाणु चमगादड़ एवं सांप से मानवों मे फैली है। इस बीमारी का अभी तक कोई ईलाज नहीं है। यह विषाणु एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति मे नाक एवं मुँह के द्वारा पहुँच जाता है। जब कोई स्वस्थ व्यक्ति किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क मे आता है तो इस संक्रमित व्यक्ति के खाँसने, छीकने या बोलने से यह विषाणु उसके शरीर से निकल कर दूसरे व्यक्ति के शरीर मे पहुँच जाता है। इस बीमारी से संक्रमित वयक्ति को बुखार, खांसी, एवं सांस लेने मे तकलीफ होती है। यदि प्रभावित व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है तो यह विषाणु पीड़ित के श्वास प्रणाली को बुरी तरह प्रभावित करता है और उसकी मौत हो सकती है। यही कारण है कि भारत सरकार और राज्य सरकार इससे बचने के लिए “सामाजिक दूरी” एवं “पूर्ण लॉक डाउन” पर जोर दे रही है।

 

 

आखिर कैसे कोविड – 19 ने भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है

जरा सोचिए कि जब इस कोरोना विषाणु को मारने या रोकने की कोई दवा या टीका ही ना हो तो आखिर इससे कैसे बचा जा सकता है। आप कहेंगे कि उस व्यक्ति से दूर रहें जो इससे संक्रमित है या उस व्यक्ति को ही दूर रखें जो इस विषाणु से संक्रमित है। यही कारण है कि ‘जनता कर्फ़्यू’ और ‘सम्पूर्ण लॉक डाउन’ कि घोषणा की गई। अब यदि सब कुछ बंद हो तो इसका प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर तो पड़ना ही है, चाहे वो शहरी हो या ग्रामीण। हम अभी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को समझने की कोशिश करेंगे। भारत की दो तिहाई जनसंख्या आज भी गाँवो मे रहती है। इतनी बड़ी आबादी यदि प्रभावित हो जाए तो भारत की जीडीपी तो प्रभावित होगी ही।

 

 

इस विषाणु ने निम्नलिखित आर्थिक कार्यकलापों को प्रभावित किया है :

 

 

फसलों की बुआई एवं कटाई:

आज के हालात मे जब किसान एवं मजदूर खेतों मे नहीं जा पा रहे है तो बुआई और कटाई का खस्ता हाल है। नई फसलों एवं सब्जियों की बुआई नहीं हो पा रही है।

साथ ही खेतों मे लहलहाती फसले, जैसे गेंहू की फसल, फूलों की खेती, चाय बागान की खेती का हाल खस्ता है। यदि इन फसलों की कटाई समय रहते नहीं की गयी तो बड़ी मात्रा मे खाद्यान्न बर्बाद हो सकती है। इन फसलों के नुकसान होने पर किसानों की वार्षिक आय पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

 

 

पॉल्ट्री फ़ार्मिंग – मुर्गी, बतख इत्यादि

भारत के ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों मे पॉल्ट्री फ़ार्मिंग होता है। भारत मे मुर्गी पालन मे अग्रणी राज्यों मे सबसे पहला नाम आंध्रप्रदेश का आता है। इसके बाद तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल एवं अन्य राज्यों का स्थान है। ग्रामीण क्षेत्रों का एक बड़ा भाग पॉल्ट्री फ़ार्मिंग मे लगा हुआ है। किसान एवं अन्य ग्रामीण इससे अंडे और मांस का उत्पादन करते है। यह इनके आय का एक प्रमुख स्रोत है। एक शोध के अनुसार यह पता चला है कि भारत मे पॉल्ट्री फ़ार्मिंग हर वर्ष 8% के दर से बढ़ रहा है। लेकिन कोरोना के कहर ने इसपर विपरीत प्रभाव डाला है। लोगों को यह वहम है कि मुर्गियों से कोरोना विषाणु फैलता है। लेकिन वैज्ञानिकों ने इस बात का खंडन किया है। इसी गलत अवधारणा के कारण कई लोग तो इन मुर्गियों को जंगलों एवं खुले स्थानों मे यूँही छोड़ दे रहे है। इससे ग्रामीणों का तो नुकसान है ही, साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था पर भी इसका प्रभाव देखा जा रहा है।

 

 

दूध का उत्पादन

संयुक्त राष्ट्र संघ के एक रिपोर्ट से ये पता चलता है कि विश्व के कुल दूध उत्पादन का 22% भारत मे होता है। भारत ने 2018 मे 180 मिलियन टन दूध का उत्पादन किया। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने यह जानकारी दी थी कि भारत मे 80 मिलियन ग्रामीण दूध उत्पादन मे लगे हुए है। पिछले कुछ वर्षों मे भारत मे दूध का उत्पादन 6.4% की दर से बढ़ा है। कोरोना विषाणु के प्रभाव से यह क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है। दूध की खपत कम हो गई है, जबकि उत्पादन मे कोई कमी नहीं आई है। कई क्षेत्रों मे दूध सड़कों पर फेक देने की भी खबरें आई थी। कभी जानना हो की दूध का व्यापार ग्रामीण लोग कैसे करते है तो कृप्या कभी गांवों मे जा कर देखिए। कई राज्यों मे दूध एकत्रित करने के लिए पंजीकृत मंडली (सोसाइटी) बनी हुई है। इन मंडलियों द्वारा हर दिन सुबह एवं शाम को दूध एकत्रित किया जाता है और उसे विभिन्न डेयरी मे भेजा जाता है। डेयरी का एक बड़ा बाजार इस पर निर्भर करता है। जिससे इन ग्रामीणों की आय मे वृद्धि होती है। लेकिन इस विपरीत परिस्थिति ने इन ग्रामीणों की आय को पूरी तरह से प्रभावित किया है। दूध प्रसंस्करण उद्योगों पर भी इसका प्रभाव नकारात्मक है।

 

 

मांस एवं मछली उद्योग पर प्रभाव

ग्रामीण क्षेत्रों मे बड़ी संख्या मे पशुओ का पालन इसके मांस के लिए किया जाता है। इन मांसों की मांग घरेलू एवं विदेशी बाजारों मे बहुत है। भारत सरकार के 2019 के आंकड़ों के अनुसार, भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा मांस निर्यातक देश है। कोरोना विषाणु ने भारत के साथ साथ विश्व के सैंकड़ों देशों को प्रभावित किया है। जिससे इसके घरेलू एवं वैश्विक बाजारों मे मांग मे कमी आई है। जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ठेस पहुंचा है। एक आँकड़े बताते है कि मछली पालन (फिशरीज) से भारत मे करीब 14 मिलियन लोग जुड़े हुए है। विश्व के उत्पादन का लगभग 6% भारत मे होता है। घरेलू बाजार के साथ साथ इसका निर्यात मे भी महत्वपूर्ण योगदान है। इस महत्वपूर्ण व्यवसाय पर भी इस कोविड 19 ने अपना प्रभाव छोड़ा है। बाजारों मे इसकी मांग मे कमी आने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। इनसे जुड़े ग्रामीण लोगों की आय कम हो गई है।

 

 

ग्रामीण कौशल विकास कार्यकरम

इस भयानक विषाणु ने आर्थिक व्यवस्था को तो प्रभावित किया है ही, साथ ही इनसे जुड़े लोगों के कौशल (स्किल) विकास को भी रोक दिया है। लॉक डाउन मे लोग घरों मे कैद सा हो गए है। कौशल विकास संस्थान बंद पड़े है। सरकार द्वारा चलाई जा रही कौशल विकास योजनायें थम गए है। इन संस्थानों के द्वारा किसानों एवं अन्य ग्रामीणों तक महत्वपूर्ण जानकारियाँ पहुचाई जाती है। इन संस्थाओ के द्वारा, किसानों को खेती विषयक, पशुपालन से संबंधित, मौसम से संबंधित जानकारी दी जाती है। जिससे इन लोगों को फायदा होता है।रोजगार उन्मुख कार्यकरम भी इन्ही संस्थाओ की मदद से चलाई है। जिससे ये लोग विभिन्न कुटीर उद्योग, कपड़ा उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों मे अपनी भागीदारी बढ़ा सकते है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने मे अपना योगदान देते है। कोरोना ने इन कौशल विकास केंद्रों को ही बंद करवा दिया है। कई स्थानों मे तो इन संस्थानों को ‘क्वारंटाइन’ केंद्रों मे तब्दील करना पड़ा है। इसका सीधा असर ग्रामीणों के कौशल विकास पर पड़ा है। अंततोगत्वा, यह भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है।

 

 

महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बीमारी का ईलाज जल्द ही ढूँढने की जरूरत है। वरना यह पूरे विश्व की आर्थिक व्यवस्था को चरमरा कर रख देगी। यदि ऐसा हुआ तो पूरा विश्व वर्षों पीछे चला जाएगा। कई लोग अपना रोजगार खो देंगे, कई लोगों की अपना रोजगार बदलना पड़ सकता है। और कई लोगों को अपनी जान भी दाव पर लगानी पड़ सकती है। अतः वक्त आ गया है, जान के साथ साथ जहान को बचाने की।

 

 

 

 

विनय कुमार
प्रबंधक,
स्टेट बैंक ज्ञानार्जन एवं विकास संस्थान, देवघर

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