लेखक: उदय शंकर सहाय
लेखक के विषय मे :
इस पुस्तक के लेखक श्री उदय शंकर सहाय हैं । सत्तर वर्षीय सहाय जी की बिहार सरकार मे इंजीनियर की नौकरी करते हुए 1984 मे आंखो की रोशनी चली गई। एक तो वृद्धावस्था , उस पर अंधेरा संसार सामने था। पर उन्होने हिम्मत नहीं हारी । धर्म, अध्यात्म, और योग मे मन लगाया और “मनोयोग” नाम से संस्था की स्थापना की। पटना और मुंबई मे सहाय जी ने अनगिनीत लोगो का इलाज किया और उनके भीतर से हीनता, निराशा, भय, चिंता और तनाव जैसे मनोरोगो को बाहर निकाल दिया। इसके अतिरिक्त उन्होने व्यक्ति के आत्म- विकास पर अध्ययन , मनन एवं चिंतन किया ।
पुस्तक समीक्षा:
यह पुस्तक प्रत्येक व्यक्ति के आकर्षक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व की पहचान कराकर ठोस आधार देने वाली पुस्तक है। व्यक्ति के चरित्र, व्यवहार, व्यक्तित्व आदि मे अनेक ऐसी वस्तुएं मिल जाएंगी, जो सच मे प्रशंसनीय है। उन्हें ढूंढ निकालना ही प्रशंसक की प्रथम आवश्यकता है। चरित्र मे आत्मविश्वास दृढ़ संकल्प द्वारा पैदा किया जा सकता है। क्षमा आपके चरित्र को पवित्र, निर्मल और कोमल बनाती है। वर्तमान संदर्भों मे आप अपने व्यक्तित्व के निर्माण के प्रति सतर्क है, क्यूंकि आपकी समझ मे आ चुका है की यह प्रभाव उत्पन्न करने का जमाना आ गया है। यह पुस्तक अपने भीतर ऐसी शक्ति का विकास करना सिखाती है जिससे दूसरों को प्रभावित किया जा सके। यदि आप इसमे सफल हुए , तो सामझिए कि आपने लक्ष्य बेध लिया। लोग आपसे प्रभावित होंगे तो आपका सम्मान करेंगे।
इस दिशा मे आप कैसे अग्रसर होंगे और आपको क्या-क्या करना होगा ? यही इस पुस्तक मे प्रतिपादित किया गया है। वास्तव मे पुस्तक के सभी उन्नीस भाग व्यवहारिक है । इनमे बताया गया है कि आपके व्यक्तित्व मे कौन –कौन से गुण हो और उन्हे आप किस तरह से विकसित कर पाएंगे। इसके लिए सर्वप्रथम आत्मविश्वासी बनना होगा और आलस्य को एकदम त्याग देना होगा । आप जिज्ञासु प्रवृत्तिके रहेंगे और वर्तमान मे जिएंगे, तो विचारो मे दृढ़ता आएगी। विनम्रता, सहनशीलता, त्याग कि भावना , कर्तव्य परायणता, प्रिय बोलना, देखना- परखना , अपने उद्देश्य कि पहचान और अध्यवसाय के साथ- साथ नियमित कार्यक्रमो पर चलते रहेंगे , तो निश्चय ही एक दिन आप अपने प्रखर व्यक्तित्व का निर्माण कर लेंगे।तब आप दुनिया के सामने दृढ़ इच्छा शक्ति एवंकौशल का प्रदर्शन कर अपने को महत्वपूर्ण सिद्ध कर सकेंगे । इस पुस्तक का यही उद्देश्य है ।
दृढ़ चरित्रबल के कारण ही व्यक्ति को सम्मान मिलता है। यही व गुण है, जिसके कारण उसे लक्ष्य कि प्राप्ति पर प्रशंसा मिलती है। इस पुस्तक मे कई उदाहरण द्वारा लेखक ने व्यक्त किया है कि किस प्रकार से आत्मविश्वास भरपूर रहा जा सकता , किस प्रकार से आलस्य को दूर भगाया जा सकता है। लेखक ने बहुत खुबसूरती से बताया है कि व्यक्ति किस प्रकार वर्तमान मे जी सकता है और हरदम जिज्ञासा बनाए रखे। लिखक ने राय दी है कि सभी लोगों को अपने भीतर विनम्रता लाना चाहिए। साथ ही साथ अपनी सहन शक्ति को बढ़ाना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
लेखक ने पुस्तक मे कहा है कि ध्येय के लिए त्याग करना जरूरी है । त्याग प्रकृति का अमोघ विधान है और प्रेम उसका लक्ष्य है। बिना त्याग के प्रेम अधूरा है और बिना प्रेम के त्याग असंभव है । पुस्तक मे कर्तव्य के निर्धारण पर भी ज़ोर दिया गया है। किसी कार्य को करने से पहले व्यक्ति को यह जान लेना चाहिए कि यह कार्य उसके कर्तव्य के अधीन आता है कि नहीं। यदि वह कार्य उसके कर्तव्य मे आता है तभी करना चाहिए । अतः यह आवश्यक हो जाता है कि व्यक्ति यह जान ले कि उसका कर्तव्य क्या है।
पुस्तक मे बताया गया है कि सफलता का कोई रहस्य नहीं है । यह केवल अति परिश्रम चाहती है ।लेखक ने कहा है की व्यक्ति को कठिनाइयो से नहीं भागना चहिए। वस्तुतः कठिन कार्यो मे साधारण कार्यो से अधिक रुचि लेने की आवश्यकता है। तभी तो उन्हे उचित ढंग से किया जा सकेगा। लेखक ने कहा है की अपने भीतर ऐसी आदत बनाइये की किसी भी कार्य से आपको भय नहीं लगे। बुरे विचारो से बच कर रहने पर भी ज़ोर डाला गया है। लेखक के अनुसार मनुष्य जैसा अपने हृदय मे विचारता है, वैसा ही बन जाता है। इससे बचने के लिए लेखक ने कहा है की अपने बुरे विचारो पर कोई अमल ही न करे, विचारो के भले- बुरे की पहचान पूर्ण सावधानी और निष्कपट भाव से करे।
लेखक ने कहा है की सम्मान दीजिए एव सम्मान पाइए। अच्छा सममान पाने का मार्ग यह है कि तुम जैसा समझे जाने की कामना करते हो, वैसा ही बनने का प्रयास करो। पुस्तक के अनुसार प्रिय बोलिए और मधुर बोलिए। मधुर और विनम्र वाणी दूसरों के हृदय मे उठते हुए क्रोध, घृणा और तिरस्कार के उफान को उसी प्रकार शांत कर देती है जैसे गर्म दूध के उफान को शीतल जल।
इसके अतिरिक्त पुस्तक मे बताया गया है कि किस प्रकार सभी वस्तुवो तो देखना परखना चाहिए।लेखक के अनुसार हर व्यक्ति को अपने उद्देश्य को जानना जरूरी है। उद्देश्य के मुताबिक नियमित कार्यक्रम बनाना चाहिए और पूरी ईमानदारी से उसका पालन करना चाहिए। लेखक कहते है की प्रत्येक व्यक्ति को परोपकार की भावना रखना चहिए। साथ-साथ चारित्रिक पवित्रता बनाए रहना भी महत्वपूर्ण है। यदि पुस्तक मे दिये वस्तुओ का निष्ठापूर्वक पालन किया जाए तो कसी भी आदमी का व्यक्तित्व जल्द ही आकर्षक और प्रभावशाली बन जाएगा।
Admin, Wealthio