अपने अस्तित्व को लगातार बचाए रखना ही निरंतरता(Sustainability) है। वर्तमान परिस्थितियों में मनुष्य अपने जीवन एवं जीविकोपार्जन को बरकरार रखने के लिए संघर्षरत है।जहां भोजन, जल, हवा, स्वास्थ्य एवं एक छोटा सा आशियाना मानव-जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं हैं तो वही जीविकोपार्जन के लिए व्यवस्थित नौकरी-धंधे का होना आवश्यक है। वैश्विक महामारी ने हमारी मुश्किलें काफी बढ़ा दी हैं। हालांकि मानव-जीवन ऐसे हीं विषम परिस्थितियों से जूझते हुए,पूर्व पाषाणकाल से आजडिजिटल विश्व तक की छलांग लगा चुका है। ऐसे दुर्गम परिस्थितियों में भी हम प्रगति-पथ पर आगे बढ़ते रहें,इन्ही सोच के साथ वर्ष 2015 के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2030 तक हासिल करने हेतु 17 सूत्रीय “सतत विकास लक्ष्य”यानी“Sustainable Development Goals”का निर्धारण किया है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सतत विकास लक्ष्य पर एक नजर डालते हैं:
1. गरीबी की समाप्ति: पहला लक्ष्य गरीबी की पूर्णतया समाप्ति रखा गया है। विश्व में इनके लिए अनेक गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन वर्तमान आर्थिक मंदी अब एक बड़ी चुनौती बन गयी है। लोग नौकरियां खो रहे हैं। व्यवसाय भी बुरी तरह प्रभावित हुये हैं। नए रोजगार सृजन व आत्मनिर्भर देश जैसी परियोजनाएं इनसे छुटकारा दिलाने में सहायक सिद्ध होंगी।
2. भूख की समाप्ति:भूख की समाप्ति अगला लक्ष्य है। व्यापार एवं खाद्दान आपूर्ति में गिरावट, भूख-समाप्ति के रास्ते में एक बड़ा रोड़ा है। खाद्य सुरक्षा एवं कृषि को बढ़ावा इसके ठोस उपाय हो सकते हैं। ऐसे भी इस महामारी के दौरान कृषि एवं इससे संबन्धित क्षेत्रों का उत्पादन दर सर्वश्रेष्ठ रहा है।
3. अच्छा स्वास्थ्य एवं कल्याण:“स्वस्थ जीवन-सुखी जीवन” सुनिश्चित करने का प्रयास इस लक्ष्य के माध्यम से है। लॉकडाउन एवं आर्थिक मंदी मनुष्यों के चिंता, अवसाद के साथ-साथ अनेक बीमारियों की वजह बन रही हैं। मंदी से बाहर आने के गंभीर उपाय एवं अच्छी स्वास्थ्य प्रणाली “स्वस्थ जीवन-सुखी जीवन” सुनिश्चित कर सकता है। उचित खानपान, योग,प्राणायाम एवं सकारात्मक सोच जीवन-स्तर में बदलाव ला रहे हैं।परिवार नियोजन, मातृ मृत्यु-दर में कमी और संचारी रोग के साथ लड़ाईभी एक प्रमुख लक्ष्य है।
4. गुणवत्तायुक्त शिक्षा: अच्छी शिक्षा अच्छा मनुष्य बनाता है, जो समाज के साथ देश-विदेश के विकास में भी काफी सहायक सिद्ध होते हैं। शिक्षण संस्थानों के बंद होने से भविष्य रूपी छात्र बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। ज्ञान पर दुष्प्रभाव के साथ-साथ मानसिक कुंठा भी जागृत हो रही हैं। ऑनलाइन शिक्षा-व्यवस्था का सदुपयोग बहुत हद तक इससे छुटकारा दिला सकता है। लॉकडाउन एवं इस विपत्ति के दौरान परिवार की ज्यादा संगति अच्छे संस्कार भी सुनिश्चित करेगा।गुणवत्ता-युक्त प्राथमिक शिक्षा, साक्षरता, व्यावसायिक और उच्च शिक्षा भी इस लक्ष्य के प्राथमिकताओं में शामिल है।
5. लैंगिक समानता: समाज के सम्पूर्ण विकास के लिए महिलाओं का समान विकास अति आवश्यक है। गिरती अर्थव्यवस्था ने महिलाओं को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। घर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का पहला शिकार महिलाएं होती हैं। इन दुष्प्रभावों से निजात पाने के लिए पुरुषों के साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं, जो परिवार के विकास के साथ कौटुंबिक आपसी समझ को भी बढ़ा रहा है। यह महत्वपूर्ण जिम्मेवारी इनमें बराबरी का भी गौरवप्रद अहसास प्रदान करता है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा, जल्दी जबरन शादीपर भी रोक लगाना आवश्यक है।
6. शुद्ध पानी एवं स्वच्छता: जल ही जीवन है। आज भी विश्व का दो-तिहाई हिस्सा पानी होने के बावजूद पीने लायक पानी मात्र दो-तीन प्रतिशत ही है। विश्व का एक बड़ा हिस्सा पीने के पानी की समस्या से जूझ रहा है। शायद उद्योगों के बन्द होने के कारण अनेक दुष्प्रभावों के बीच पानी एवं वातावरण का शुध्ध होना एक सद्प्रभाव है लेकिन पानी की बचत एवं बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग ही इसकी अनवरत उपलब्धता सुनिश्चित करेगा।एकीकृत जल संसाधन प्रबंधनपानी की समस्याओं से कुछ हद तक निजात दिला सकता है।
7. सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा: विभिन्न रूपों में ऊर्जा मनुष्य-जीवन के लिए नितांत आवश्यक है। यह उद्योग एवं भोजन पकाने जैसी आवश्यक प्रक्रम के लिए एक मात्र उपयोगी संसाधन है। हालांकि महामारी के दौरान, मांग की कमी ने इनके कीमत में काफी कमी लायी हैं लेकिन भंडारण अभाव एवं इसके स्थायित्व की कमी ने इनका बहुत दुरुपयोग भी कराया है। कोयले के जगह रसोई गैस एवं अक्षय ऊर्जा जैसे सौर, पवन, सागर ऊर्जा आदि सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा हेतु एक प्रभावी विकल्प है।
8. शालीन काम एवं आर्थिक विकास:सभ्य काम स्वतः ही संतुष्टि के साथ हमें आर्थिक विकास की ओर ले जाएगा। मध्यम वर्गीय लोग हाल के दौरान बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। उनकी योग्यतानुसार काम उपलब्ध नहीं है और मजदूरी कार्य उनके आत्म-सम्मान एवं शारीरिक क्षमता के विपरीत होंगे। सरकार द्वारा रोजगार परक योजनायें सभ्य काम के साथ आर्थिक विकास के ओर भी हमें अग्रसर करेंगी।उचित आय, कार्यस्थल में सुरक्षा और परिवार के लिए सामाजिक सुरक्षामूलतः एक अनिवार्यता है।
9. उद्योग, नवीनता एवं बुनियादी सुविधाएं: वर्तमान परिस्थिति में उद्योग बंद हो रहे हैं। उत्पादन में भी काफी गिरावट पाया जा रहा है। ऐसे परिस्थिति में नवोन्मेषी सोच बदलाव ला सकती हैं। किसी भी देश के विकास में बुनियादी सुविधाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। महामारी से निपटने के लिए दवाएं एवं वैक्सीन का शोध, उद्योग एवं नवीनता को मजबूती प्रदान करेगा। डिजिटलाइजेशन एवं आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का समझ भरा उपयोग उद्योग, नवीनता एवं बुनियादी सुविधाओं में आमूल चूल परिवर्तन ला सकता है।
10. असमानता मे कमी: आज भी हम जाति-वर्ण, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, विकसित-विकासशील जैसी सोच में बंटे हुये हैं। इनमें कमी लाना समेकित विकास के लिए अति आवश्यक है। “सभी को समान अवसर” एवं “सभी को समान अधिकार” जैसे सोच इसमें प्रभावी बदलाव ला सकते हैं।
11. स्थायी शहर एवं समुदाय: शहरों में कृषि जैसी वैकल्पिक व्यवस्था ना होने के कारण बेरोजगारी बढ़ रही है। प्राकृतिक विपदा से निपटने के संरचित उपाय ना होने के कारण भी समुदाय एवं शहर को विस्थापित होना पड़ता है। सुनियोजित ढंग से बने शहर स्थायी होते हैं।यहाँ प्रदूषण एवं हरियाली का न होना जैसी चिंताओं से भी बचा जा सकता है। बड़ी संख्या में झुग्गी-झोपड़ियों का होना भी चिंतनीय है।
12. जिम्मेदार उपभोग एवं उत्पादन: प्लास्टिक, पेट्रोल, डीजल,आदि का समझदारी से उपभोग एवं सीमित उत्पादन लंबे समय तक इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करेगा। इनका गैर अनुशासित उत्पादन एवं उपभोग हमें संकट में डाल सकता है। प्राकृतिक संसाधनों का कुशल उपयोगनिरंतरता के लिए अति आवश्यक है।
13. जलवायु क्रिया: अनिश्चित जलवायु परिवर्तन भी एक गंभीर चिंता का विषय है। वृक्षों की कटाई, प्रदूषण एवं कार्बन मोनोक्साइड जैसे खतरनाक गैसों का उत्सर्जन आदि जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण हैं। विकसित देशों की जिम्मेदारियां ज्यादा हैं,लेकिन सभी देशों को इनसे निपटने के लिए सुविधापयोगी वस्तुओं जैसे- वातानुकूलित, फ्रीज़ आदि के अनुशासित उपयोग, वृक्षारोपण जैसे प्रयासों पर गंभीरता से ध्यान देना होगा।
14. जल के नीचे जीवन: स्वस्थ सागर एवं महासागर हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यकहैं। पारिस्थितिक तंत्रके साथ-साथ मनुष्यों के आजीविका में जल के नीचे के जीवन का भी महत्वपूर्ण भागीदारी है। यह भोजन, ऊर्जा एवं पानी का महत्वपूर्ण साधन है। तीन अरब से भी ज्यादा की आबादी,आजीविका के लिए इन पर आश्रित है। महामारी के दौरान उद्योगों के बंद होने के कारण जल प्रदूषण में तात्कालिक लाभ तो जरूर हुआ है लेकिन औद्योगिक कचरा को उसमें प्रवाहित करने से रोकना होगा।
15. जमीन पर जीवन: पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता के नुकसान को रोकने के लिए वनों का प्रबंधन, भूमि क्षरण एवं मरूस्थलीकरण से लगातार मुक़ाबला नितांत आवश्यक है। लॉकडाउन के दौरान गतिविधियों के थम जाने के कारण कुछ हद तक पारिस्थितिक तंत्र मजबूत हुआ है लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। भूमि पर जीवन संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण साधनपुनर्चक्रण हो सकता है।
16. शांति, न्याय एवं मजबूत संस्थाएं: शांति में ही तरक्की है। विभिन्न राष्ट्र जाति, नस्ल,व आंतरिक व्यवस्थाओं के मुद्दे पर आंदोलनों से ग्रसित हैं। कोविड 19 के दौरान भी महामारी को रोकने एवं व्यवस्था को बनाए रखने हेतु लिए गए निर्णयों के विरोध में कुछ लोगों ने जम कर धमाल मचाया। कुछेक देशों में मानव तस्करी एवं आतंकवाद जैसे गंभीर अपराध पर भी कोई मजबूत न्याय व्यवस्था नहीं हैं। संस्थाएं विभिन्न राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय प्राधिकारिओं के दबाव में काम करती हैं। विकास के पथ पर अग्रसित रहने हेतु शांति एवं न्याय के लिए मजबूत संस्थाओं का होना भी एक विशिष्ट लक्ष्य माना गया है।
17. लक्ष्य के लिए भागीदारी: सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को भी एक महत्वपूर्ण लक्ष्य माना गया है। सभी पक्ष मिल कर एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं। महामारी से निपटने के लिए लगभग सभी देश एक मंच पर खड़े दिखायी दिये। दबाव के परिस्थिति में सामान्यतः अमीर, गरीब, विकसित, विकासशील जैसी सोचों का प्रादुर्भाव होता है परंतु निरंतरता के लिए सभी का मिलकर काम करना अति आवश्यक है।
सभी के बेहतर और अधिक टिकाऊ भविष्य के लिए “सतत विकास लक्ष्य” प्रभावी हथियार प्रतीत होता है। यूं तो अब ये निश्चय ही जीवन-मंत्र है लेकिन आर्थिक मंदी एवं वैश्विक महामारी के दौरान भी हमारे द्वारा इन सत्रह सूत्रीय लक्ष्यों पर आधारित सकारात्मक गतिविधियां अवश्य ही हमारे जीवन-व्यवस्था को निरंतरता की ओर ले जाएंगी। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सतत विकास लक्ष्य एक दूरगामी परिणाम के लिए निश्चय ही मील के पत्थर साबित होंगे।
मलय कुमार
मुख्य प्रबंधक (संकाय)
स्टेट बैंक ज्ञानार्जन एवं विकास संस्थान, वाराणसी