कैपिटल लिंक क्रेडिट सब्सिडी टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन योजना (CLC-TUS) से सूक्ष्म और लघु उद्यमी पाएं रुपये 15 लाख लाख तक का पूंजीगत अनुदान

कैपिटल लिंक क्रेडिट सब्सिडी टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन योजना (CLC-TUS) से सूक्ष्म और लघु उद्यमी पाएं रुपये 15 लाख लाख तक का पूंजीगत अनुदान

कैपिटल लिंक  क्रेडिट सब्सिडी स्कीम की शुरुआत भारत सरकार द्वारा सन 2000 में की गई।  इसका उद्देश्य सूक्ष्म और लघु उद्यमियों को उनकी मशीनरी और तकनीक को अत्याधुनिक बनाने के लिए तथा खुली अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करने के लिए पूंजीगत अनुदान देना है । इस योजना का क्रियान्वयन भारत सरकार के एम.एस.एम.ई. मंत्रालय द्वारा किया जाता है।

इस योजना के अंतर्गत कौन कौन से उद्यम होते हैं लाभार्थी :यह योजना सभी नए और पुराने सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए है जो नए और बेहतर तकनीक वाले प्लांट व मशीनरी खरीदने के लिए बैंकों/ ऋणदायी संस्थाओं में ऋण आवेदन कर रहे हों। मध्यम और वृहत उद्योग इस योजना के लिए योग्य नहीं होते हैं। एकल स्वामित्व वाले, साझीदार फर्म, सहकारी समितियां, संस्थाएं, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप वाली सूक्ष्म व लघु इकाइयां इस  योजना में भाग लेने के योग्य हैं। आरक्षित जाति, आरक्षित जनजाति तथा महिला स्वामित्व  वाले ऐसे सभी उद्यम जिनमें इनकी न्यूनतम स्वामित्व 51% होती है, वे भी इस योजना के लिए योग्य होते हैं। ऐसे उद्यम जिन्होंने पूर्व में भी इस योजना के अंतर्गत आंशिक अनुदान प्राप्त किया हो वे भी रु 15 लाख तक की अधिकतम सीमा के अंदर फिर से अनुदान प्राप्त कर सकते हैं।

 

सूक्ष्म और लघु उद्यम एम.एस.एम.ई.डी. अधिनियम 2006 द्वारा परिभाषित होती हैं।  वर्तमान में विनिर्माण या सेवा क्षेत्र के वह उद्योग सूक्ष्म उद्योग की श्रेणी में आते हैं, जिनकी प्लांट व मशीनरी में निवेश रु 1 करोड़ से अधिक ना हो तथा सालाना कारोबार रुपए 5 करोड़ करोड़ तक ही सीमित हो। साथ ही विनिर्माण या सेवा क्षेत्र के वह उद्योग लघु उद्योग की श्रेणी में आते हैं, जिनकी प्लांट व मशीनरी में निवेश रु 1 करोड़ से अधिक लेकिन रु 10 करोड़ से अधिक न हो  तथा सालाना कारोबार रुपए 5 करोड़ से अधिक लेकिन रु 50 करोड़ तक ही सीमित हो ।

 

पूंजीगत  अनुदान की राशि :इस योजना के तहत अधिकतम रुपये 15 लाख तक की राशि का पूंजीगत अनुदान दिया जाता है। अनुदान की राशि मियादी ऋण की उस राशि की 15% होती है जो प्लांट और मशीनरी के लिए वितरित की जाती है। अनुदान की गणना उक्त मियादी ऋण की अधिकतम सीमा रु 1 करोड़ तक ही हो सकती है।  अनुदान की गणना में सहायक उपकरण जैसे कि टूल्स, डाइ, मोल्ड्स, स्पेयर पार्ट्स, जनरेटर सेट, ट्रांसफार्मर आदि शामिल नहीं किए जाते हैं। इंस्टॉलेशन की कीमत, परिवहन के खर्चे आदि भी शामिल नहीं की जाती है। अगर मशीनरी आयात की गयी  है तो आयात शुल्क, शिपिंग चार्ज, टैक्स आदि भी अनुदान की गणना में शामिल नहीं की जाती है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की स्वामित्व वाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों को 10% अतिरिक्त अनुदान देने का भी प्रावधान है।   

 

इस योजना की योग्यता की शर्तें:यह अनुदान सिर्फ बेहतर और उन्नत तकनीक वाली नई मशीनरी की खरीद के लिए ही दी जाती है। एम.एस.एम.ई. मंत्रालय के वेबसाइट www.dcmsme.gov.inपर इन सभी मशीनरी एवं तकनीक की सूची तथा चिन्हित 51 उद्योग क्षेत्रों  की सूची  उपलब्ध है जो अनुदान के उपयुक्त हैं। पुरानी/ मरम्मत की हुई मशीन की खरीद के लिए यह अनुदान नहीं दी जाती है। केवल वही उद्यमी आवेदन कर सकते हैं जिन्होने उक्त मशीनरी की खरीद के लिए बैंक/ ऋणदायी संस्थानों  से मियादी ऋण के लिए आवेदन किया हो। ऋण स्वीकृति पत्र में “CLC-TUS योजना के योग्य” उल्लिखित होना आवश्यक है।

 

केवल वही मशीनरी  अनुदान के लिए उपयुक्त होते हैं जो ऋण की स्वीकृति के उपरांत खरीदे गए हों ।  वह उद्यमी CLC-TUS के अंतर्गत योग्य नहीं हैं जिन्होने तकनीक उन्नयन के लिए कहीं और से जैसे कि केंद्र/राज्य सरकारों की किसी योजना के अंतर्गत अनुदान ले रखा हो।

 

इस योजना का लाभ लेने के लिए उद्यमियों को अपने इकाई का “उद्योग आधार नंबर” लेना अनिवार्य होता है। “उद्योग आधार नंबर (UAN)” प्राप्त करने के लिए उद्यमी को अपने इकाई को भारत सरकार के एम.एस.एम.ई. मंत्रालय के वेब पोर्टल https://udyamregistration.gov.inपर पंजीयन करना होता है। साथ ही उद्यमियों को अपनी इकाई को एम.एस.एम.ई. मंत्रालय के वेब पोर्टल https://www.msmedatabank.inपर भी पंजीयन करना अनिवार्य है।

 

इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदक अपना आवेदन उन सभी सूचीबद्ध वाणिज्यिक बैंक, सूचीबद्ध सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, स्टेट फाइनेंशियल कॉरपोरेशन, नॉर्थ ईस्ट डेवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूसन ,सभी राष्ट्रीयकृत बैंक के माध्यम से कर सकते हैं। ये वो ऋण प्रदाता हैं जिन्होने इस योजना के अंतर्गत एम.एस.एम.ई. मंत्रालय से करार कर रखा होता है। ऋण की अंतिम किश्त के वितरण के उपरांत आवेदक को निर्धारित आवेदन प्रारूप के साथ बैंक की ऋण स्वीकृति पत्र, MOU(Memorandum of Understanding) क़रारनामा संलग्न करना आवश्यक है। 

 

वर्तमान में इस योजना के क्रियान्वयन के लिए कुल 11 बैंकों व  एजेंसियों को नोडल प्वाइंट के रूप में अधिकृत किया गया है। इन नोडल संस्थाओं में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जैसे कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक, SIDBI, NABARD आदि शामिल हैं ।  इनके अतिरिक्त दूसरी ऋणदायी बैंक या संस्थाएं SIDBI/ NABARD के माध्यम से अनुदान प्राप्त करते हैं। आवेदन करने की समय सीमा तथा योजना की अवधि विस्तार समय-समय पर एम.एस.एम.ई. मंत्रालय के वेबसाइट www.dcmsme.gov.inपर अधिसूचित की जाती हैं। 

 

अनुदान का वितरण :अनुदान की राशि ऋण की अंतिम किश्त के वितरण के पश्चात अग्रिम रूप में ही (Front end) प्राप्त हो जाती है। लेकिन प्राप्त अनुदान ऋण खाते में समायोजित करने के पूर्व उद्यमी को 3 साल तक व्यवसायिक उत्पादन करते रहना आवश्यक होता है। इस बीच अनुदान की राशि को प्राप्ति की तारीख से 3 वर्षों तक तक सावधि जमा  के रूप में रखी जाती है जिस पर किसी भी प्रकार का ब्याज या ऋण सुविधा उपलब्ध नहीं होती है। अनुदान की राशि के बराबर ऋण की राशि पर भी किसी प्रकार का ब्याज नहीं लगता है।  3 वर्षों तक व्यवसायिक उत्पादन पूर्ण होने के पश्चात अनुदान की राशि को ऋण खाते में जमा कर दिया जाता है। इस बीच यदि अनुदान प्राप्तकर्ता का खाता एन.पी.ए. हो जाता है तो यह अनुदान वापस ले लिया जाता है। अनुदान प्राप्तकर्ता इस अनुदान से प्राप्त मशीनरी को 5 वर्षों से पूर्व बेच नहीं सकते हैं। हालांकि अनुदान प्राप्त कर्ता अपने खाते को अन्य बैंक में  अनुदान समेत “टेकओवर” करा सकते हैं। 

 

योजना से संबन्धित अन्य जानकारी या स्पष्टीकरण एम.एस.एम.ई. मंत्रालय के वेबसाइट www.dcmsme.gov.inसे प्राप्त की जा सकती हैं।

 

 

 

शैलेश कुमार झा

मुख्य प्रबन्धक (प्रशिक्षण)

भारतीय स्टेट बैंक ज्ञानार्जन और विकास केंद्र, अजमेर

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